दर्शनीया पूजनीया

दर्शनीया पूजनीया मातृ शत शत वंदना
कोटी कँठोंसे सुनो समवेत जननी प्रार्थना ॥

मानसार योगी शीला से ब्रह्मनद से सिंधु तक
कोटी क्षेत्रोंसे जुटाये पत्र फल और पुष्प जल
भक्ति नवध सूत्रमें बांधे सुमन आराधना ॥

धवल हिमगिरी के शिखरसे नीलगिरी की श्यामला
सिंधुके सिकता कणों से दीप्त मणीपुर की प्रभा
सप्त रंगोंसे सँवारे इंद्रधनु की कल्पना ॥

धूल का आंधड उडाता ग्रीष्म क्रूर वेग से
कडकडाते पश्चिमी झोंके तनोंको भेदते
सावनी रिम झिम बसंती राग की संयोजना ॥

विविधता से एकता का पुष्ट मा आधार तुम
भक्ति विव्हल वीर जन की इष्ट मा साकार तुम
चतुर वरणों के फलों की मूल मा की साधना ॥

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