ध्येय मन्दिर की दिशा में पग सदा बढ़ते रहें।
ह्नदय में तव स्मृति लता नित पल्लवित होती रहें।
कृपा से हमको मिले गति मति सहित द्युति आपकी
कष्ट में सुख में सदा आ बसी हो छवि आपकी।
ध्येय निष्ठा ह्नदय उर में पथिक बस चलता रहे ॥१॥
देखकर चहुँ ओर दुःख दारिद्रय भीषण आपदा।
द्रवित होकर आपने फिर त्याग दी सब सम्पदा।
दंभ मोह हताश होकर आपको लखते रहे ॥२॥
शत युगों में आप जैसा अवतरित व्यक्तित्व पाया
आपके स्मृति कवच ने नित्य ही हमको बढ़ाया।
दृष्टि निश्चय भाव से धृव ध्येय पर केन्द्रिय रहे ॥३॥
धूल के प्रत्येक कण से घोष उठता है महा।
आपका पद-स्पर्श पाया देह धन्य हुई महा।
चरण की गति हो अखण्डित और बढ़ती रहे ॥४॥
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